खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य कौन सा है? | Khadi boli ka pratham mahakavya kaun sa hai

 


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क्या आप जानते है कि बोली का प्रथम महाकाव्य कौन सा है नहीं तो इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे।

खड़ी से अर्थ है खरी अर्थात शुद्ध अथवा ठेठ हिंदी बोली है। शुद्ध अथवा ठेठ हिंदी बोली या भाषा को उस समय खरी या खड़ी बोली के नाम से संबोधित किया जाता था। 

खड़ी बोली हिंदी का प्रथम महाकाव्य प्रियप्रवास है। प्रियप्रवास महाकाव्य के रचयिता अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध है। हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य वर्ष 1913 में प्रकाशित हुआ था। अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध द्विवेदी युग के कवियों में से एक कवि थे।

 
प्रियप्रवास के प्रमुख चरित्र कृष्ण एवं राधा हैं परन्तु कवि अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध ने उसमें युगानुकूल कुछ परिवर्तन किए हैं। प्रियप्रवास में श्रीकृष्ण को भगवान न मानकर एक महापुरुष, एक जननायक के रूप में चित्रित किया गया है।  
 
प्रियप्रवास काव्य कृति का मुख्य रस करुण रस है। प्रियप्रवास महाकाव्य में कुल 17 सर्ग है जो मुख्यतः दो भागों में विभाजित है। पहले से आठवें सर्ग तक की कथा में कंस के निमंत्रण लेकर अक्रूर जी ब्रज में आते है तथा श्रीकृष्ण समस्त ब्रजवासियों को शोक में छोड़कर मथुरा चले जाते है। 

नौवें सर्ग से लेकर सत्रहवें सर्ग तक की कथा में कृष्ण, अपने मित्र उद्धव को ब्रजवासियों को सांत्वना देने के लिए मथुरा भेजते है।

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